गांधी जी के ऊपर लिखी गई किताबों से ज्ञात होता है, कि गांधी जी बचपन से ही वक़्त और हिसाब के पाबंद रहें हैं। बचपन में पैसे बचाने के लिए, वे मीलों दूर पैदल जाते थे। वे मानते थे, कि पैसा केवल जरूरत के समय खर्च करना चाहिए। इस पाठ में गांधी जी द्वारा आश्रम में लाने वाली वस्तुओं के बारे में जानकारी और व्यय के प्रति जागरूकता, उनकी हिसाब-किताब के प्रति चुस्ती को दिखाती है।